नमस्ते दोस्तों, मनीष यहाँ, आज अपने दिल का हाल आज आप सब के साथ शेयर करने जा रहा हूँ। ये कहानी है मेरे सपनों की, मेहनत की, और उन ठोकरों की, जिन्होंने मुझे बार-बार गिराया। 2017 में शुरू हुआ मेरा ब्लॉगिंग का सफर 2023-24 तक आते-आते जैसे ताश के पत्तों सा बिखर गया। लेकिन मैं हार मानने वालों में से नहीं। जिंदगी ने जितना गिराया, उतना ही उठने की ताकत भी दी। तो आओ, चलें इस रोलरकोस्टर की सवारी पर—थोड़ी हंसी, थोड़े आँसू, और ढेर सारा हौसला।
2017-2020: जब सपनों को पंख लगे
ब्लॉगिंग जर्नी, सपनों की शुरुआत, गूगल सर्च

2017 में जब ब्लॉगिंग शुरू की, तो बस एक ख्वाब था—गूगल पर अपनी जगह बनाना। बिहार के छोटे से गाँव में, जहाँ इंटरनेट रुक-रुक कर चलता था, मैं रात-रात भर जागकर आर्टिकल लिखता। कीवर्ड ढूँढना, टॉपिक चुनना, फिर पब्लिश करके इंतज़ार—कब कोई पढ़ेगा? 2018 आते-आते मेहनत ने रंग दिखाया। ब्लॉग पर लोग आने लगे, कुछ पैसे भी। वो फीलिंग थी, जैसे आसमान की सैर कर रहा हूँ!
2019 और 2020 भी ऐसे ही बीते। हर नया आर्टिकल लिखना, जैसे अपने दिल की बात दुनिया तक पहुँचाना था। जब कोई कमेंट करता, “मनीष भाई, मज़ा आ गया,” तो मन खुश हो जाता। ब्लॉगिंग मेरे लिए बस काम नहीं थी, वो मेरा जुनून थी, मेरा सुकून। मेरा सपना सच हो रहा था।
2021-22: दोस्तों में खोया, ब्लॉग पीछे छूटा
र्ब्लॉगिंग में रुकावट, दोस्तों की संगत, समय का भटकाव

2020 तक सब मस्त था, लेकिन 2021 में मैं थोड़ा भटक गया। दोस्तों के साथ ज्यादा टाइम बिताने लगा। गाँव की गलियों में मस्ती, देर रात तक गप्पें, कभी-कभी तो भटकते-भटकते सुबह हो जाती। ब्लॉग को टाइम देना कम हो गया। पहले जहाँ हफ्ते में दो-तीन पोस्ट डालता था, अब महीने में एक-आध। दोस्तों की संगत ने ऐसा रंग चढ़ाया कि ब्लॉगिंग का वो जोश कहीं गुम सा हो गया।
2021 और 2022 बस ऐसे ही निकल गए। ब्लॉग लाइव तो था, लेकिन उसकी चमक फीकी पड़ने लगी। फिर भी, मन में एक तसल्ली थी—मेरा ब्लॉग तो है, मेरा सपना तो ज़िंदा है। लेकिन जिंदगी को तो जैसे कुछ और ही मंजूर था।
2023: शादी का ड्रामा और ऐडसेंस की मार!
शादी का दबाव, गूगल ऐडसेंस बंद, ब्लॉगिंग की चुनौतियाँ

2023 की शुरुआत में जिंदगी ने नया ड्रामा शुरू किया। घरवाले शादी के पीछे पड़ गए। “मनीष, अब उम्र हो गई, शादी कर ले!” दोस्तों के साथ बिताया वक्त सबने कुछ ज्यादा ही सीरियस ले लिया। बात पक्की हुई, और शादी हो गई। इस चक्कर में ब्लॉग को मैंने जैसे भूल ही दिया। साइट खोलना तो दूर, पोस्ट ड d ालने का ख्याल तक नहीं आता था।
फिर 5 अगस्त 2023 को गूगल से एक मेल आया। पढ़ा तो दिल बैठ गया। मेरा ऐडसेंस से जुड़ा जीमेल अकाउंट हमेशा के लिए बंद। ये मेरे लिए ऐसा था जैसे कोई पुराना दोस्त बिना बताए चला जाए। भले ही मैं ब्लॉग पर ध्यान नहीं दे रहा था, लेकिन वो मेरा था, लाइव था—ये बात दिल को सुकून देती थी। मैंने जी-जान लगाकर कोशिश की—ऐडसेंस का मेल चेंज करने की जुगत भिड़ाई, लेकिन कुछ नहीं हुआ। हर कोशिश खाली गई। दुख ऐसा था, जैसे दिल में कोई सुई चुभ रही हो।
2024: हादसा, टूटा पैर, टूटा हौसला
एक्सीडेंट, जिंदगी की मुश्किलें, हिम्मत का इम्तिहान

2024 ने तो जैसे मेरे सब्र की सारी हदें पार कर दीं। एक हादसा हुआ, और पैर में फ्रैक्चर। एक महीना बिस्तर पर बिताना पड़ा। सोचो, दिन-रात एक ही जगह, न हिल पाओ, न कुछ कर पाओ। वो दिन जैसे काटे नहीं कटते थे। मन में बस यही सवाल—क्यों हो रहा है ये सब मेरे साथ? मैं, जो कभी सपनों के पीछे भागता था, अब बिस्तर पर पड़ा था। अंदर से टूट सा गया था, लेकिन जिंदगी ने रुकना कहाँ सिखाया। धीरे-धीरे रिकवर हुआ, पर मन में एक खालीपन सा रह गया।
साइबर फ्रॉड और नई शुरुआत की कोशिश
साइबर फ्रॉड, नया बिजनेस, मोबाइल एक्सेसरीज शॉप

रिकवरी के बाद जॉब तो थी, लेकिन उससे गुजारा मुश्किल था। सोचा, कुछ नया करूँ। थोड़ी सी बचत थी, उससे एक मोबाइल एक्सेसरीज की दुकान खोली। शुरुआत अच्छी थी। लग रहा था, अब शायद जिंदगी फिर से पटरी पर आएगी। लेकिन किस्मत को तो जैसे मेरे साथ मज़ाक करने की आदत थी। एक दिन साइबर फ्रॉड के नाम पर मेरा ऐडसेंस से जुड़ा बैंक अकाउंट फ्रीज कर दिया गया। साइबर सेल के चक्कर काटे, कागजात जमा किए, महीने भर भागदौड़ की, लेकिन कुछ हासिल नहीं हुआ।
दुकान चल रही थी, पर वो पहले वाला जोश अब कहाँ। फिर भी, मैंने हार नहीं मानी। बिहार की मिट्टी से निकला हूँ—गिरे, तो उठे, और फिर से दौड़े।
2025: ब्लॉग का अंत, लेकिन उम्मीद बाकी
AI चैटबॉट्स, रील्स का दौर, नई उम्मीद

इन सब मुश्किलों ने मुझे थका सा दिया था। ऊपर से ब्लॉगिंग का हाल देखो। AI चैटबॉट्स—ChatGPT, Gemini, Grok—और रील्स की दुनिया ने जैसे ब्लॉगिंग को निगल लिया। मेरा ब्लॉग 2023 के बाद से अपनी आखिरी साँसें गिन रहा था। अब तो लगता है, वो पूरी तरह खत्म हो चुका है। सोचा, अब इसे भूल ही देना चाहिए। लेकिन जिंदगी ने सिखाया कि हर अंत एक नई शुरुआत लाता है।
मेरी मोबाइल एक्सेसरीज की दुकान अब मेरी उम्मीद है। हर सुबह जब शटर उठाता हूँ, तो लगता है—हाँ, अभी कुछ बाकी है। बिहार की मिट्टी में जड़ें हैं, और ये जड़ें मुझे बार-बार उठने की ताकत देती हैं।
तुम्हारी बारी, दोस्त
पर्सनल स्टोरी, जिंदगी की सीख, हिम्मत की कहानी
ये थी मेरी कहानी—कभी हंसी, कभी आँसू, और ढेर सारी सीख। हर बार गिरा, हर बार उठा। चाहे वो ऐडसेंस रिकवर करने की जिद थी, या दुकान शुरू करने का जुनून। मैं अभी हारा नहीं हूँ। अगर तुम्हारी भी कोई ऐसी कहानी है—कोई दुख, कोई सबक, कोई नई शुरुआत—तो शेयर करना। मैं फिर मिलूँगा, अपनी कहानी का अगला हिस्सा लेकर।